Tuesday 21 April 2015

भागा हुआ है खुदा

(1)

मंदिर के अंधेरे कोने में जो फूलों से दबा बैठा है
एक खुदा खौफ का मारा हुआ है आजकल

इत्र चंदन से नहाने का शौक जब से लगा उसे
गांव- मि‍ट्टी की खुश्बू से भागा हुआ है आजकल

खेतों को जाती, कांख में दबी रोटी का तूने ,खुदा !
जरूर उड़ाया होगा मज़ाक हंसकर कभी , तभी तो -

तेरे बुत को सुंघाया जाता है नकली परसाद और
नकली दूध से तू नहलाया जा रहा है आजकल
             
(2)
  

क्यूं तू समझेगा भूख का असल मानी , ज़रा बता
तेरी रसोई तो छप्पन भोगों से सजी है... तुझे क्या

डूबी फसल , मुआवजा , लेखपाल , सरकार
सब गिद्ध मानुस 'भूख' को बेच रहे,  तुझे क्या

तू तो कल चंदन से नहाकर देगा उनको दरसन
जेबतराशों  की दंडवतों पै मुस्काएगा , तुझे क्या

तेरी आरती की गूंज क्या उस घर को दे पाएगी सुकूं
मासूमों के पेट के लिए बाप करे खुदकुशी, तुझे क्या

मंदिर में खड़ा जयकारों में मशगूल बना रह
खेतों के खुदा की मौत पर  तू जश्न मना, तुझे क्या ।

- अलकनंदा सिंह






Wednesday 15 April 2015

राजस्थान पत्र‍िका के रविवार 12.04.2015 में प्रकाश‍ित मेरी कहानी - पगले का दान

राजस्थान पत्र‍िका के रविवार 12.04.2015 में प्रकाश‍ित मेरी कहानी - पगले का दान । 
पूरी कहानी पढ़ने के लिये कृपया लिंक पर क्लिक करें.... 



Friday 3 April 2015

रेडलाइट वाली औरतें


उस बस्ती की औरतें हैं या
ये निशाचरों की है दुनिया ,
वे निकलती हैं रात को
दिन का उजाला लेकर
पाप क्या और पुण्य क्या
वहां कोई तोल नहीं सकता
ज़हर पीने वाली बना दी गईं पापी
और हाथ झाड़ खड़ा होता है पुण्यात्मा
बीवी बच्चों के सामने देता है
ईश्वर की दुहाई
...... हकीकत इतनी सी है कि
फि‍र कितने धर्माचार्य हो जायेंगे-
 बेरोजगार ....
यदि बता दे उनके भक्तों को कोई
कि रहती हैं अब भी
धरती पर नीलकंठ की भौतिक देहें
जो पुण्यात्माओं की दैहिक तृप्ति के लिए
पी जाती हैं गरल हंसते हंसते
उस बस्ती की औरतें भी तो नीलकंठ ही हैं ?
उन गरलगर्भाओं के तप को
बस्ती के नाम ने डस लिया
तभी तो रात को सजती हैं संवरती हैं ...
जागती हैं पुण्यात्माओं का गरल पीने को ।

- अलकनंदा सिंह 

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